बलात्कार …. इन घटनाओं पर कभी-कभार शोर होता है, लोग विरोध प्रकट करते हैं, मीडिया सक्रिय होती है, सरकारें और कोर्ट सख्त होती हैं पर अपराध कम होने की बजाय …. वो अपनी गति से चल रहा होता है। महिलाओं के बाद इसका सबसे ज़्यादा कोई शिकार है तो वो हैं बच्चे। स्कूल, पड़ोस, ट्यूशन और कई बार घर के अंदर इन बच्चों के साथ वो घिनौना व्यवहार होता है जिसका दर्द एक मासूम बच्चा जीवन भर महसूस करता है। रोजाना इन अपराधियों … नहीं नहीं ‘मानसिक रोगियों’ द्वारा अपराध और बलात्कार के नए नए तरीके अपनाये जाते हैं। अभी हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें बलात्कार एक नए तरीके को अपनाया गया है!

हाल ही में नोएडा पुलिस ने 81 साल के एक स्केच आर्टिस्ट को गिरफ्तार किया है। उस पर 17 साल की एक नाबालिग लड़की से डिजिटल रेप करने का आरोप लगा है। इस मामले में पीड़िता आरोपी के लिव इन पार्टनर के एक कर्मचारी की बेटी बताई जाती है, जिसे बेहतर शिक्षा के लिए साल 2015 में उस दंपति के साथ रहने के लिए भेजा गया था। आरोपी करीब 20 साल से लड़की के पिता का दोस्त है। पुलिस के मुताबिक, पहले तो लड़की डर के मारे खामोश रही, लेकिन बाद में इसने साहस जुटाकर आरोपी की हरकतों को रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। उसके पास जब काफी सबूत इकट्ठा हो गए तो उसने इस मामले में शिकायत की। शिकायत के आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (रेप), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 5 और 6 के तहत मामला दर्ज किया है।
अब जान लेते हैं कि डिजिटल रेप होता क्या है? दिसंबर 2012 के पहले तक ‘डिजिटल रेप’ की कोई कानूनी परिभाषा नहीं थी और ये बलात्कार के दायरे में नहीं आता था। लेकिन निर्भया केस के बाद फिर से रेप को परिभाषित किया गया। जिसके बाद डिजिटल रेप को भी रेप के कैटेगरी में शामिल किया गया। अंग्रेज़ी डिक्शनरी में जब आप डिजिट का मतलब देखेंगे तो इसके दो अर्थ होते हैं पहला होता है अंक और दूसरा उंगली, अंगूठा या पैर की उंगली जैसे शारीरिक अंगों को भी डिजिट कहा जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि सेक्सुअल harassment के ऐसे मामले जिनमें रिप्रोडक्टिव आर्गन के अलावा किसी ऐसे अंग या ऑब्जेक्ट को सेक्सुअल एक्टिविटीज के लिये इस्तेमाल किया जाता है जिनके उदाहरण हाथ या पैर की उंगली या कोई अन्य दूसरी वस्तु हो सकती है, उन्हें डिजिटल रेप कहा जाता है।
असल में डिजिटल रेप का नाता इंटरनेट से नहीं है। रेप और डिजिटल रेप में सीधा फर्क है रिप्रोडक्टिव आर्गन के इस्तेमाल का। वैसे तो डिजिटल रेप का कोई भी लड़की या महिला शिकार हो सकती है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा खतरा नाबालिग और अबोध पर रहता है। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि नाबालिग या छोटे बच्चों को इस तरह की हरकत को समझ पाना आसान नहीं है, क्योंकि कई बार बच्ची यह समझ ही नहीं पाती है कि उसके साथ क्या हो रहा है? इसलिए भारत में अभी भी डिजिटल रेप के मामले बेहद कम दर्ज होते हैं। जबकि आंकड़ों को देखा जाय तो अकेले 2020 में 2655 मामले 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ रेप के दर्ज हुए थे। ये कुल मामलों का करीब 10 फीसदी केस है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के साल 2020 आंकड़ों के अनुसार देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ रेप के सबसे ज्यादा मामले राजस्थान, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और झारखंड में दर्ज किए गए हैं।
हालांकि, कानून की नजर में रेप और डिजिटल रेप में कोई फर्क नहीं। दोनों के लिए समान सजा का प्रावधान है। आरोपी उंगलियों के जरिए पीड़िता का यौन उत्पीड़न करता था। ऐसे में जिन धाराओं में आरोपी के ऊपर केस दर्ज़ हुआ है उसमें दोष साबित होने पर अपराधी को कम से कम 5-10 साल जेल की सजा या आजीवन कारावास भी हो सकती है।