
दरअसल 2008 के मुंबई हमले के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक ऐसी केंद्रीय एजेंसी की जरूरत महसूस की गई, जिसके पास व्यापक अधिकार हों। इसीलिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी का गठन किया गया। इस तरह यह एक संघीय जांच एजेंसी है, जिसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए 31 दिसंबर 2008 को एनआईए एक्ट, 2008 के तहत किया गया था।
ब्लॉग : एनआईए और भारत में आईएसआईएस …
एनआईए के पास समवर्ती अधिकार क्षेत्र हैं जिससे इसे देश के किसी भी भाग में आतंकवादी हमले की जांच पड़ताल करने का अधिकार प्राप्त होता है। इसके जांच के दायरे में देश की प्रभुसत्ता एवं अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले हमले, बम विस्फोट, हवाई जहाज तथा समुद्री जहाज और परमाणु संस्थानों पर किए जाने वाले हमले शामिल हैं। आतंकवादी हमलों के अलावा जाली मुद्रा, मानव तस्करी, ड्रग्स या मादक पदार्थ, संगठित अपराध, जबरन धन वसूलने आदि से संबंधित अपराध भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। ग़ौरतलब है कि पिछले साल ही एनआईए संशोधन अधिनियम, 2019 के जरिए एनआईए के क्षेत्राधिकार में वृद्धि करते हुए इसे जाली मुद्रा से जुड़े अपराधों की जांच पड़ताल करने और अभियोग चलाने का अधिकार दिया गया था।
NIA को बने 13 साल हो गए है,इस दौरान 400 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, 349 से ज्यादा मामलों में चालान दाखिल कर दिया गया है, लगभग 2,494 अपराधियों को पकड़ा गया है, 391 को सजा दिलाने में सफलता मिली है और 93.25 प्रतिशत दोष सिद्धि का अनुपात रहा है। 90 फ़ीसदी से ज्यादा अपराधियों का साबित होना यह बताता है कि एजेंसी अपने अभियानों में काफी हद तक सफल रही।
इस एजेंसी को अपने अधिकार क्षेत्र से जुड़े मामले के बारे में किसी राज्य विशेष में जांच करने के लिए वहां के राज्य सरकार के स्पेशल परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती। इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय का लिखित आदेश ही पर्याप्त है। लेकिन NIA एक्ट की इसी आधार पर आलोचना की जाती है कि यह संघीय ढांचे के कांसेप्ट का उल्लंघन करता है। दरअसल कानून व्यवस्था बरकरार रखना राज्य सूची का विषय है, जबकि कई मामलों में एनआईए राज्य के बिना अनुमति के ही दखल दे सकती है। इतना ही नहीं, यह अपने अधिकार से क्षेत्र से जुड़े मामलों का स्वत संज्ञान भी ले सकती है।