
उड़ीसा के भुवनेश्वर में एक मंदिर मौजूद है जिसका नाम है लिंगराज मंदिर। यह मूलतः भगवान शिव को समर्पित है और ओडिशा के सबसे पुराने और भुवनेश्वर के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 11वीं सदी में सोम वंश के शासक ययाति केसरी द्वारा कराया गया था। बाद में, इसमें गंग वंश के शासकों ने भी काफी योगदान दिया। मंदिर के देउल यानी शिखर की ऊंचाई 180 फीट बताई जाती है और यह भुवनेश्वर में मंदिर स्थापत्य कला एक बेहतरीन उदाहरण है। बता दें कि स्थापत्य कला की कलिंग शैली की शुरुआत भुवनेश्वर से ही हुई थी। इसमें मंदिर को आमतौर पर चार मुख्य सभा मंडपों में बांटा जाता है – गर्भ गृह, यज्ञ मंडप, नाट्य मंडप और भोग मंडप। मंदिर की एक और खास बात यह है कि यह शैव और वैष्णव संप्रदायों के समन्वय का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि मंदिर में स्थापित भगवान को हरि-हर के रूप में जाना जाता है।

साल 2019 में ओडिशा सरकार ने एक फैसला लिया कि इस मंदिर को इसके 350 साल पुराने संरचना के जैसे ही फिर से सजाया जाएगा। इसके लिए ओडिशा सरकार ने भुवनेश्वर में मंदिर और उसके परिधीय क्षेत्र के लिए एक लंबी-चौड़ी विकास योजना की घोषणा की। लगभग 700 करोड़ रुपये की लागत से नौ स्थलों और उसके आस-पास के क्षेत्रों की विरासत को सुरक्षित व संरक्षित करने के लिए 66 एकड़ में फैले ‘एकमरा क्षेत्र विकास योजना’ शुरू की गई। इसके लिए उड़ीसा सरकार ने एक कानून बनाया जिसका नाम है लिंगराज मंदिर अध्यादेश 2020। दरअसल उस समय उड़ीसा विधानसभा का सत्र नहीं चल रहा था, जिसकी वजह से इसे अध्यादेश के रूप में पारित किया गया।
इस अध्यादेश में, लिंगराज मंदिर और तीन जलाशयों समेत 12 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों को शामिल किया गया है; मंदिरों के अंदर या बाहर वस्तुओं की बिक्री के लिए खुदरा दुकानों को अनुमति दी जाएगी; एक प्रबंध समिति द्वारा ‘लिंगराज मंदिर’ से जुड़ी चल या अचल संपत्ति के पट्टे या बिक्री की देखरेख की जाएगी और नए भवनों की मरम्मत और निर्माण का प्रावधान किया गया है। अध्यादेश पर सहमति के लिए इसे केंद्र सरकार के पास भेजा गया, जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए हाल ही में केंद्र सरकार ने ओडिशा सरकार को कहा कि लिंगराज मंदिर और उसके आसपास के कुछ अन्य मंदिरों के सम्बन्ध में राज्य सरकार को क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है। यह केंद्र सरकार के कानून प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 (AMASR Act 1958) का उल्लंघन होगा।
AMASR अधिनियम के मुताबिक, इन 12 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के संरक्षण का अधिकार ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’ को है। ऐसे में इनके संरक्षण के सम्बन्ध में राज्य सरकार क़ानून कैसे बना सकती हैं। साथ ही, किसी भी स्मारक का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता, जबकि अध्यादेश में ‘खुदरा दुकानों’ को परमिशन देने की बात कही गई है। इसके अलावा, AMASR अधिनियम एक संरक्षित स्मारक के 100 मीटर के भीतर नए निर्माण की अनुमति नहीं देता है यानी इस क्षेत्र में कोई भी निर्माण कार्य नहीं हो सकता है। इसी तरह से 200 मीटर की परिधि में काम करने के लिए पुरातत्वविद से अनुमति लेना होगा। इस तरह से केंद्र सरकार का कहना है कि अध्यादेश में कई ऐसे प्रावधान हैं जो AMASR Act 1958 का उल्लंघन कर रहे हैं।